कोविड-19 : बड़े काम के हैं ये आजमाए तरीके

कोविड-19 : बड़े काम के हैं ये आजमाए तरीके

भारत के योगाचार्य और आयुर्वेदाचार्य सार्स-कोविड 2 यानी नोवेल कोरोनावायरस से मुकाबला करने के लिए जो उपाय बता रहे हैं, वे कोई अठारह साल पहले यानी सन् 2002 में नोवेल कोरोनावायरस के छोटे भाई सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) में आजमाए हुए हैं। सार्स का प्रकोप भी चीन से ही शुरू हुआ था और एक साल के भीतर 37 देशों के लोग संक्रमित हो गए थे। हालांकि तब तबाही का मंजर इतना व्यापक नहीं था। पर सार्स के लक्षण नोवेल कोरोनावायरस के लक्षणों लगभग मिलते-जुलते थे। कमाल यह कि सार्स प्रभावित देशों के जिन इलाकों में भारतीय रहते थे, वहां उस बीमारी का असर बेहद कम हुआ था। इसकी वजह पड़ताल की गई। पता चला था कि सब्जियों में एंटी बैक्टीरियल हल्दी का प्रयोग किए जाने के कारण सार्स का असर उन पर कम हुआ था।

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विश्व अध्ययन केंद्र, मुंबई के परामर्शदाता और प्रसिद्ध लेखक रवि कुमार ने योग पर हालिया प्रकाशित अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र किया है। “योग – विश्व को भारत की अनमोल भेंट” नामक पुस्तक के मुताबिक जब सार्स से बचाव में हल्दी के चमत्कार की खबर हांगकांग के अखबार “मार्निंग पोस्ट” में प्रकाशित हुई तो हांगकांग के भारतीय रेस्टोरेंटों के बाहर लंबी कतारें लग गई थीं। सबकी एक ही मांग थी कि उन्हें हल्दी युक्त भारतीय करी चाहिए। दूसरी तरफ तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने विधानसभा में कहा था कि सार्स को फैलने से रोकने के लिए सिंगापुरी लोगों को तमिलनाडु से हल्दी और तुलसी खरीदते देखा जा रहा है।

योग विद्या के जानकार बताते हैं कि वही वक्त था जब चीन में योग बेहद लोकप्रिय हो गया था। सार्स से संक्रमित लोगों को बुखार, सूखी खांसी, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द  और सांस लेने में कठिनाई होती थी। ज्यादातर मौतें निमोनिया की वजह से हुई थीं। तब लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए आर्युर्वेदिक दवाओं के साथ ही योगाभ्यास करने की सलाह दी गई। लोगों को कुछ आसन और प्राणायाम की चार विधियां बतलाई गई थी। तब प्राणायाम कितना कारगर साबित हुआ, इसका आकलन तो नहीं हो पाया था। पर बाद के दिनों में दुनिया भर में प्राणायाम पर जो शोध हुए, उनसे साबित हुआ कि कफ निकाल कर श्वसन तंत्र को दुरूस्त रखने में प्राणायाम की बड़ी भूमिका होती है। दूसरी तरफ सार्स के बाद चीन में जब योग खासा लोकप्रिय हुआ तो माना गया कि सार्स से बचाव में योग की भी भूमिका रही होगी। मौजूदा समय मे चीन में दस मिलियन लोग नियमित रूप से योग करते हैं।

नोलेल कोरोनावायरस का प्रकोप शुरू होने के बाद भारतीय योग गुरूओं और आय़ुर्वेदाचार्यों ने लगभग वही उपाय सुझाए हैं, जिन्हें सार्स से बचाव में कारगर माना गया था। इस बीच आस्ट्रेलिया में कोरोनावायरस से संक्रमित एक महिला पर हुए शोध के ऐसे नतीजे सामने आए, जिससे फिर साबित हुआ कि रोग प्रतिरोधी क्षमता बनाए रखने और श्वसन तंत्र को ठीक रखने में प्राणायाम की भूमिका हो सकती है। तभी हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने भी मौजूदा संकट में योग का सहारा लेने की सिफारिश की है। नोवेल कोरोनावायरस का प्रकोप और योग में विशेष तौर से प्राणाम के फायदों को जानने के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने प्राणायाम को अपने जीवन का हिस्सा बनाया है। पर संक्रमण से भयभीत लोगों को योगाभ्यास के लिए किसी योग गुरू के पास जाने के बदले यूट्यूब का सहारा लेना पड़ रहा है।

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इस कॉलम के कई पाठकों का कहना है कि वे विज्ञान की कसौटी पर योग के फायदे जान चुके हैं। यूट्यूब से अभ्यास के तरीके भी समझ ले रहे हैं। पर इन अभ्यासों की अनेक बारीकियों का ज्ञान नहीं मिल पाता। इससे भ्रम की स्थिति बनी रहती है। पाठकों के और भी कई सवाल हैं। बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती और आयंगार योग के जनक बीकेएस आयंगार की पुस्तकों के आधार पर प्रस्तुत कुछ तथ्यों से प्राय: सभी सवालों के जबाव मिल जाएंगे।

पहली बात तो यह कि आसन के बाद ही प्राणायाम का अभ्यास किया जाना चाहिए। प्राणायाम के बाद आसन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इस बात को ध्यान रखा जाना चाहिए कि योग में प्राणायाम प्रारंभिक क्रिया नहीं है। दूसरी बात कि ध्यान के पहले प्राणायाम किया जाना चाहिए। प्राणायाम पुरातन काल में भी योगियों की चिकित्सा का आधार रहा है। मनोकायिक रोग हो, श्वसन प्रणाली का दोष हो या फिर बाह्य रोगाणुओं के आक्रमण संबंधी रोग हो, सभी का निराकरण प्राणायाम के जरिए ही किया जाता था। आधुनिक युग में भी वैज्ञानिक शोधों से यह बात साबित हो रही है। प्राणायामों में नाड़ी शोधन प्राणायाम, उज्जायी प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम मौजूदा महामरी के लिहाज से विशेष लाभप्रद बताया जा रहा है।

महर्षि घेरंड ने नाड़ी शोधन प्राणायाम को अन्य प्राणायाम साधना का प्रवेश द्वार माना है। हालांकि बाबा रामदेव पहले कपालभाति फिर भस्त्रिका और अंत में नाड़ी शोधन प्राणायाम बताते हैं। खैर, इस प्राणायाम को करने के लिए किसी भी हालत में न तो बल प्रयोग नहीं करना चाहिए और न ही ज्लदबाजी। हृदय रोगियों को उज्जायी प्राणायाम के साथ बंधों और कुंभक का अभ्यास नहीं करना चाहिए। यह प्राणायाम कफ, जुकाम, बुखार और यकृत आदि रोग नहीं होने देता। उच्च रक्तचाप में भी फायदा पहुंचाता है।

भस्रिका प्राणायाम से शरीर के तापमान में वृद्धि होती है। शरीर से विषाक्त पदार्थों का निष्कासन होता है। फेफड़े सही तरीके से काम करते हैं। भस्त्रिका की तरह कपालभाति प्राणायाम भी फेफड़े को स्वच्छ रखता है। भस्त्रिका व कपालभाति प्राणायाम हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, चक्कर आना, मिर्गी, दौरे पड़ना, हार्निया या गैस्ट्रिक व अल्सर से पीड़ित व्यक्तियों के लिए वर्जित है। कोरोनावायरस को लेकर अवसाद के कारण अनेक लोग आत्म-हत्या तक कर ले रहे हैं। ऐसे में भ्रामरी प्राणायाम बेहद उपयोगी है। इससे क्रोध, चिंता व अनिद्रा का निवारण होता है। रक्तचाप कम होता है और प्रमस्तिष्कीय तनाव व परेशानी दूर होती है। गले के रोगों का भी निवारण होता है। पर इस अभ्यास को लेटकर कभी नहीं करना चाहिए। कानों में संक्रमण होने पर भी इसका अभ्यास वर्जित है। हृदय रोगियों को बिना कुंभक के इसका अभ्यास करना चाहिए।

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नोवेल कोरोनावायरस के इलाज के लिए एलोपैथी दवाओं पर अनुसंधान भले शैशवावस्था में है। पर रोग के लक्षणों के आधार पर भारतीय चिकित्सा की परंपरागत विधियों के पुराने प्रयोगों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर मौजूदा संकट के दौर में जरूर एक खास तरह की आश्वस्ति मिलती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

 

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